बात ज्यादा पुरानी नहीं है , बारहवी के नतीजे के बाद चर्चा हो रही थी कि बच्चों को क्या पढ़ाया जाए। ऐसे में हरीश ने बोला, मैं अपने बेटे को विदेश भेजूंगा। और ये चाहूंगा कि वो वहीं बस जाए। सुन कर थोड़ी हैरानी हुई। हरीश के पास तीन चार फैक्टरी हैं। व्यापार अच्छा है, पैसे की कमी नहीं। घरेलू किस्म का व्यक्ति है लेकिन बेटे को विदेश भेजने के लिए तैयार है। सिर्फ पढ़ाने  के लिए नहीं बल्कि वहां पर बसने के लिए। क्यों ........

और मेरे मन में आया लो इस पर तो विदेश का भूत सवार है.... बाहर की चमक धमक इसे रास आ रही है। देश प्रेम के जितने गाने याद थे वो सब एक क्षण में दिमाग में आ गए। भारतीय परंपरा और संस्कृति की सारे दलीले दिमाग में तैयार हो गई। और मैं पूरी तरह से तैयार थी एक लंबा चौड़ा भाषण देने के लिए। अपना देश अपने लोग
विदेश में सेंकेड सीटिजन आदि आदि...

क्यों.....
विदेश से लोग यहां पर पढ़ने के लिए आते हैं, इलाज के लिए आते हैं, हम लोग विदेशियों की नौकरी क्यों करें.... ऐसा क्या है उनके पास जो हमारे पास नहीं है..

उसका जबाब बड़ा सादा था...  क्वालिटी ऑफ लाइफ... साफ पानी, साफ हवा, शुद्ध खाना.... अच्छा स्वास्थ्य के लिए कुछ जरूरी चीजें....

और ये मुझे सन्न कर गई.....

उसके दिमाग जो चीजें थी वो तो मैं मान कर चल रही थी कि ये तो संभव नहीं है। अब प्रदूषण के इस माहौल में साफ हवा और पानी कहां से मिलेगा। और खाना जो हम खा रहे हैं.. हमारे हिसाब  से शुद्ध है पर उसमें वाकई कितने कीटाणु नाशक मिले हैं। तो वाकई हम क्या खा रहे हैं और क्या पी रहे हैं। जिस हवा में हम सांस लेते हैं वो कितनी जहरीली है। और ये सब मिल कर हमे तिल तिल मार रहे हैं। और हम इसे स्वीकार भी रहे हैं। अब हम कर भी क्या सकते हैं।

पर हरीश का मानना था कि हम बहुत कुछ कर सकते है अगर सरकार हमारा साथ दे तो... इसका मतलब आंदोलन नहीं था लेकिन सिर्फ गुजारिश थी कि इस समस्या को हम समस्या माने और ये भी माने कि ये बदल सकता है।

 वैसे देश भर के पर्यावरण विद इन मुद्दों पर हमारा ध्यान खींचने की कोशिश कर रहे हैं... हम सुनते हैं मानते हैं पर या तो  इसकी गंभीरता समझते नहीं या फिर समझौता कर लेते हैं। पर इसका उपाय क्या है...
कड़े कानून..... वोट राजनीति से हट कर कुछ मुश्किल फैसले.... हालांकि जितना आसान है कहना उतना आसान मानना है क्या...
क्या मैं अपनी गाड़ी घर पर छोड़ कर काम पर सार्वजनिक वाहनों से निकलुंगी... क्या देश की सरकार बिल्डरों के बजाय किसानों को पहली प्राथमिकता देगी।

क्या ऐसे नियम होंगे कि गांव से पलायन रुकेगा।

खूब सारे "क्या"  हैं और इनके जबाब मुश्किल है सरकार के लिए भी और हमारे लिए भी...

पर क्या उन सवालों की अनदेखी करने के बजाय हम उन पर विचार करेंगे...

ये एक आम आदमी की चिन्ता है अपने बच्चों के लिए.... उसका विकल्प विदेश है जहां पर हवा पानी साफ है ...

साफ और पूजनीय नदियों के देश में क्या हम ये विकल्प खड़ा नहीं कर सकते ..................

सिर्फ बातों पर नहीं बल्कि यथार्थ की धरती पर...


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